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हिल जात्रा – कुमाऊँ पर्वों की आवाज

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HillJatra मिट्टी और उत्सव का संगम

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पिथौरागढ़ की घाटियों में मनाया जाने वाला हिल जात्रा एक ऐसा लोक उत्सव है जो किसानों, पशुपालकों और मिट्टी से जुड़ी हमारी सांस्कृतिक आत्मा की कहानी कहता है। यहाँ ‘हिल’ मतलब मिट्टी और ‘जात्रा’ त्योहार—दो शब्दों में एक खेती-किसानी से भरा उत्सव।

यह त्योहार मानसून के मौसम में, खासतौर से धान की रोपाई के बाद मनाया जाता है। असल में, यह महीना खेती की मेहनत और जमीन की उर्वरता का उत्सव होता है—मनमोहक नजारे, रंग-बिरंगे मुखौटे और स्थानीय संगीत के साथ।

जहाँ से आरंभ हुआ: पिथौरागढ़ और पड़ोस के गांव

HillJatra शुरुआत में पश्चिमी नेपाल के सोरार क्षेत्र से आया था, लेकिन धीरे-धीरे कुमोर गांव में खुद को धरती से जोड़ लिया। बाद में यह बाजेठी, अस्कोट और कनालिचhina जैसे आस-पास के इलाकों तक पहुंचा और वहां एक स्थानीय रंग लेना शुरू कर दिया—कुछ जगहों पर इसे ‘हिरण चितल’ नाम से भी जाना जाता है।

लोक मान्यता है कि चंद शासकों के प्रतिनिधि ‘कुरु’ नेपाल से लौटे और साथ लाए चार मास्क (लखियाभूत, हलवाह, दो बैल) और एक हल — इन्हीं युक्तियों से इस पर्व की शुरुआत हुई। हो सकता है कि यह “उत्सव” जितना खेती का सम्मान करता है, उतना ही लोकसाहित्य और वीरता की कहानी भी कहता हो

उत्सव के तीन रंग—पूजा, प्रदर्शन, मिलन

हिल जात्रा कोई साधारण मेला नहीं, बल्कि एक जीवन्त रंगमंच है — इसमें तीन मुख्य अध्याय होते हैं:

  • (i) पूजा एवं बलिदान:
  • उत्सव की शुरुआत भूमि और देवी-देवताओं से जुड़ी विधाओं के अनुरूप होती है, जिसमें बकरी का अनुष्ठान और बलिदान शामिल है—यह खेती में विकास और समृद्धि की कामना की सेटिंग है।
  • (ii) नाट्य प्रदर्शन और मुखौटे:
  • दूसरा चरण सबसे शानदार होता है—मास्क पहनकर कलाकार बैल, किसान, लखियाभूत, हिरण आदि के रूप में कथा को रंगीन तरीके से मंचित करते हैं। यह Hill Jatra का केंद्र बिंदु है, जो खेती-किसानी, लोक प्रतीकों और दृश्य कला का समन्वय प्रस्तुत करता है।
  • (iii) लोकगीत और चंचरी नृत्य:
  • दिनभर की सांस्कृतिक उमंग के बाद शाम को लोकगीत और वृत्ताकार नृत्य (चंचरी) की धूम होती है। पूरे गांव के लोग सामूहिक बिंदास हो कर गाते, नाचते, मिलते हैं—एक भावनात्मक ऊर्जावान अनुभव मिलता है।

प्रतीकों की गहराई: लखियाभूत और हिरण

  • लखियाभूत: यह पात्र शिव की जटाओं से उत्पन्न माना जाता है। यह गाँव का संरक्षक, शौर्य और आध्यात्मिक शक्ति और उर्वरता का प्रतीक है।
  • सफेद वस्त्रधारी हिरण: इसे स्थानीय देवता के रूप में पूजा जाता है। यह प्राकृतिक सौंदर्य, कोमलता और प्रकृति से गहरे संबंध का प्रतीक है।

ये पात्र सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि लोक स्मृति और पहचान से जुड़ी विरासत को आगे ले जाते हैं। Hill Jatra में मास्क पहनकर अभिनय करना किसान जीवन, लोककथा और पहचान का ज्वलंत रूप प्रस्तुत करना होता है।

6. यात्रा गाइड: कब और कहाँ?

कैसे जाएँ: पिथौरागढ़ तक सड़क मार्ग से पहुंचते ही, स्थानीय मार्गों से पैदल या वाहन द्वारा कुमोर गांव पहुंचा जा सकता है। स्थानीय मार्गदर्शन और सरल रहने की व्यवस्था यहाँ का अनुभव और भी यादगार बना देता है।

स्थान: मुख्य रूप से कुमोर गांव (पिथौरागढ़) में मनाया जाता है, लेकिन बाजेठी, अस्कोट और कनालिचhina जैसे आसपास के गांव भी हिस्सा बनते हैं।

समय: यह उत्सव भाद्रपद महीने के आठवें दिन (आठों/Aathon) और गवरा विसर्जन के समय में आता है—अगस्त-से september का महीना।

हिल जात्रा सिर्फ एक पर्व नहीं है—it’s a bridge between soil and soul. यह गांव की मिट्टी, लोक कला, लोकगीत, लोक पहनावे और लोक दुर्गा की कहानियाँ एक साथ बुना गया एक रंगीन ताना-बाना है। जब हम इस उत्सव को “Hill Jatra festival Uttarakhand” जैसे शब्दों से इंटरनेट पर खोजते हैं, तो हम सिर्फ एक फेस्टिवल नहीं देख रहे होते—हम उस लोकधारात्मक अनुभव को खोजना चाहते हैं जो ढलती धूप, गाद भरी मिट्टी, मास्कधारी कलाकार और सामूहिक उल्लास से जुड़ा है।

Hill Jatra में इंसान का खेती से रिश्ता, लोक संस्कृति की जड़ें और मनुष्य और प्रकृति का सौहार्द मिलकर एक अप्रतिम अनुभव का रूप लेते हैं। यही खूबसूरती इस पर्व की आत्मा है — और इसी बीच Hill Jatra हमारे अंदर गाँव, मिट्टी और पहचान की लौट आने वाली भावना को जगाता है।

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What is Hill Jatra and where is it celebrated?

Hill Jatra is a vibrant harvest and mask festival celebrated primarily in the Pithoragarh district of Uttarakhand’s Kumaon region, especially in villages like Kumor, Bajethi, and Askot. The name “Hill” stands for mud/soil and “Jatra” means festival, illustrating its deep roots in agrarian culture

What are the origins of Hill Jatra?

Originating over 500 years ago, Hill Jatra came from the Sorar (Mahakali) region of western Nepal. It was introduced to Kumor village by a representative of the Chand king, who brought along masks (such as Lakhiyabhoot, Halwaha, two bullocks) and a Nepali plough. The festival then spread to Bajethi, and was adapted into “Hiran Chital” in Askot and Kanalichhina

How is Hill Jatra celebrated?

Hill Jatra unfolds in three vivid phases:
Phase 1: Ritual worship and a goat sacrifice, seeking blessings for agriculture.
Phase 2: A dramatic mask performance, featuring roles like farmers, oxen, and the legendary Lakhiyabhoot.
Phase 3: Folk songs and traditional chanchari (circle) dancing late into the nigh

When is Hill Jatra held each year?

Hill Jatra typically takes place in Bhadrapad (August–September), particularly around the eighth day (Aathon) of the month and associated rituals like Gawra Visarjan

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