
देवभूमि कांगुड़ा: एक अद्भुत धार्मिक स्थल की यात्रा
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित थौलधार ब्लॉक का इडियान गांव एक विशेष धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इस गांव में स्थित कांगुड़ा स्थल को नागराज देवता की भूमि माना जाता है (देवभूमि कांगुड़ा के कुल क्षेत्रफल का कुछ हिस्सा पन्दोगी गांव एवं कुछ हिस्सा इडियान गांव की राजस्व भूमि में पड़ता है), इस दिव्य स्थानसे हिमालय की श्रृंखलाओं के साथ-साथ गंगोत्री, गौमुख, बागनाथ, शक्तिपीठ मां चंद्रबदनी देवी, मां सुरकंडा देवी, और सेम मुखेम की ऊंची चोटियों का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता है। इस स्थल की धार्मिक महत्ता और यहां की पौराणिक कथा इसे और भी खास बनाती है।
कांगुड़ा स्थल का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
स्थानीय लोगों के अनुसार, प्राचीनकाल में एक वृद्ध यात्री सेम मुखेम से कांगुड़ा की ओर जा रहा था। रास्ते में उसकी मुलाकात इडियान गांव के एक बुजुर्ग व्यक्ति से हुई। लंबी यात्रा के कारण वृद्ध यात्री थक चुका था और उसने गांव के बुजुर्ग से मदद मांगी। हालांकि, उस बुजुर्ग व्यक्ति के कंधे पर पहले से ही बोझ था, फिर भी उसने सहर्ष मदद के लिए हामी भर दी। उसने वृद्ध यात्री से कहा, “मेरे कंधे पर बैठ जाओ, यदि मैं चल पाया तो तुम भी चल सकोगे।” जैसे ही यात्री उसके कंधे पर बैठा, बुजुर्ग की थकान गायब हो गई और वह तेजी से गांव की ओर चल पड़ा। गांव में पहुंचने के बाद जब बुजुर्ग ने पीछे मुड़कर देखा तो वह वृद्ध यात्री गायब हो चुका था।
अगले दिन उस बुजुर्ग को सपने में वही यात्री दिखा, जिसने बताया कि वह सेम मुखेम से आया था और उसे कांगुड़ा नामक स्थान पर स्थापित होना था। पहले तो बुजुर्ग ने इस सपने को अनदेखा किया, लेकिन बाद में उसके साथ कई अकल्पित घटनाएं घटीं। कुछ समय बाद नागराज देवता स्वयं उस बुजुर्ग पर अवतरित हुए और उसे अपना उपासक चुना।

कांगुड़ा स्थल की स्थापना और श्रद्धा का केंद्र
बुजुर्ग व्यक्ति ने कांगुड़ा स्थल पर एक छोटा सा पत्थर स्थापित किया, जो धीरे-धीरे गांव के लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। यहां आने वाले श्रद्धालु विभिन्न समस्याओं, जैसे बारिश की कमी, संतान प्राप्ति, और नकारात्मक शक्तियों के निवारण के लिए नागराज देवता से प्रार्थना करते थे। धीरे-धीरे यह स्थल क्षेत्र के 18 गांवों के लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बन गया।


कांगुड़ा स्थल का वर्तमान स्वरूप और धार्मिक महत्व
आज कांगुड़ा स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है, जिसमें 9 साल लगे। 2024 में इस मंदिर का उद्घाटन और मूर्ति स्थापना माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा की गई। उन्होंने 2022 में भी इस स्थल का दौरा किया था और इस अद्भुत स्थान को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी।
हर साल जून के महीने में इस स्थल पर एक डोली यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें 18 गांवों के लोग शामिल होते हैं। यह यात्रा क्षेत्रवासियों के बीच बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है।
धार्मिक पर्यटन के रूप में उभरता कांगुड़ा
आज यह देवभूमि कांगुड़ा हजारों श्रद्धालुओं का केंद्र बन चुका है। यहां की आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने के साथ-साथ यह स्थल एक नए धार्मिक आकर्षण की ओर बढ़ रहा है, जहां श्रद्धालु अपनी आस्था को और भी मजबूती से स्थापित कर सकते हैं।
इस प्रकार, कांगुड़ा स्थल का दौरा न केवल धार्मिक अनुभव देता है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और पौराणिक इतिहास भी आपको मंत्रमुग्ध कर देता है।
कांगुड़ा का भविष्य
कांगुड़ा का भविष्य अब और भी उज्ज्वल नजर आ रहा है। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध इस स्थल को सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने से यहां की विकास संभावनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिर परिसर में सुविधाओं का विस्तार, सड़कों का निर्माण, और पर्यटकों के लिए आवास की व्यवस्था जैसी योजनाओं के जरिए इस स्थल को एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
इस सबके साथ, कांगुड़ा न केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य के केंद्र के रूप में उभर रहा है। इस स्थल का दौरा करने वाले हर व्यक्ति को यहां की पवित्रता, शांति, और अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव का अहसास होता है, जो उसे जीवनभर याद रहता है।
कांगुड़ा की यात्रा निश्चित रूप से एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है, जो आपको उत्तराखंड के इस अद्भुत स्थल की गहराई से जुड़ी मान्यताओं और परंपराओं से परिचित कराता है।
कांगुड़ा स्थल तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
कांगुड़ा स्थल तक पहुंचने के लिए आप देहरादून या ऋषिकेश से सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं। यदि आप देहरादून के रास्ते का उपयोग करना चाहते हैं तो आपको मसूरी धनौल्टी होते हुए ज्वरना पहुचते हैं और यहाँ से ब्रांच रोड बंगियाल से मैन्द्खाल इडियान पंहुचा जा सकता है । और यदि आप ऋषीकेश से जाना चाहते हैं तो आप NH34 (ऋषिकेश-धरासू) मोटर मार्ग का इस्तेमाल कर सकते है ऋषिकेश से 111 किलोमीटर पर कंडीसौर बाज़ार पड़ता है यहाँ तक आप चाहे तो बस के जरिये पहुच सकते है इस से आगे आप कंडीसौर-मैन्द्खाल मोटर मार्ग पर 13 किलोमीटर तक टेक्सी के जरिये जा सकते है और इडियान, मंजरुवाल या मैन्द्खाल कही से भी आप कांगुड़ा के लिए पैदल मार्ग से यहाँ पहुच सकते हो (इडियान गाँव से मार्ग 500 मीटर और ज्यादा सरल भी पड़ता है)
कांगुड़ा स्थल की यात्रा का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

वैसे तो आप 12 महीनों में से किसी भी महीने यहाँ की यात्रा कर सकते है किन्तु जून के महीने जब यहाँ पर 7-10 दिनों का मेला आयोजित होता है उस समय यहाँ पर जाना ज्यादा शुभ माना जाता है उस दौरान आप भगवान नागराजा की डोली के साक्षात् दर्शन भी यहाँ कर सकते हैं
कांगुड़ा नागराज मंदिर के पुजारी कौन है ?
कांगुड़ा नागराज भगवान के मंदिर के पुजारी पन्दोगी गाँव के ब्राम्हण हैं इसी गाँव के ब्राह्मणों द्वार इस मंदिर में पूजा अर्चना एवं अन्य धार्मिक कार्यों का विधि विधान से किया जाता है